पतझड़ मन ने अब कोपल की, आस में जीना सीख लिया है।
अब हर उलझन, हर बाधा के, साथ में जीना सीख
लिया है।
अंतर्मन की गहराई में, दफ्न उदासी को करके अब ।
अवसादों के शवागार पर, मुस्काना अब सीख लिया है।
छिने उजाले हमसे तो क्या, रात में जीना सीख लिया है।
अब तो हमने अंधियारे के, साथ में रहना सीख लिया है।
अंतर्मन में छिपी उदासी, कौन यहाँ पढ़ पाया है।
इसीलिए अब कूट हंसी की, शाख पे जीना सीख लिया
है।
जज्बातों का कत्ल यहाँ पर, हर पल हर क्षण होता है।
और उदासी में डूबा मन, सुबक सुबक कर रोता है।
सैलाबों को, जज्बातों को कालकोठरी में रख कर अब ।
निष्ठुर जग की चकाचौंध में, घुलना मिलना सीख लिया है।
अब चहरे पर हंसी सदा ही, निखरी निखरी दिखती है।
अब तो हमने ऐसे हर हालात में, जीना सीख लिया है।
गहन उदासी की कब्रों पर, खुशियों के कुछ दीप जलाकर।
अब तो हमने गैरों को भी, गले लगाना सीख लिया है।
लेखिका:-शशि सिंह